कैसे भूलूँ शहीदों की कुरवानियां बिजलियां सैकड़ों थी चली आंधियां कैसे पाई है आजादियों की फिजां कुछ दरख्तों पे अब भी बने हैं निशां ये तिरंगा नहीं ये तो अभिमान है आन है ये यही तो मेरी जान है। ©कवि मनोज कुमार मंजू #शहीद #कुर्बानी #आंधियां #आजादी #फिजा #तिरंगा #अभिमान #मनोज_कुमार_मंजू