मेरे बेअदब से ख़त (full in caption) मेरे बेअदब से ख़त.. जिनमें नहीं होती नमस्कार प्रणाम जैसी शुरुआत, नहीं पूछा जाता हाल चाल सामने वाले का क्यूँकि मुझे लगता है कि अगर वो मुझे जानता है तो ख़ुद ही मेरा काँधा माँग लेगा। इसलिए मैं सीधे आ जाती हूँ काम की बातों पर...न कोई औपचारिकता की कशमकश, न किसी झूठी मीठी बातों का बंधन! मेरे बेअदब से ख़त किसी सीमा में नहीं बंधते..बहते हैं पहाड़ों, पत्थरों की परवाह किये बिना बेपरवाह झरने से.. और न ही अंत मे लिखती हूँ सप्रेम, प्यार सहित, आपका अपना..बस अंत कर देती हूँ सिर्फ़ अपने नाम से। पर खटक जाती है यही ब