जो नहीं करना होता......वही पहले करता है, चलते-फिरते, सोते-जगते, हमेशा सजग रहता है, ये मन है.... जो कभी नहीं सोता है। दिन की व्यस्तता में जब, चलती रहती हैं अन्तरक्रियाएँ कई; इक छोटा सा हिस्सा इसका, चल पड़ता है अतीत की गहराईयों में कहीं। कुरेद कुरेद कर लाता है यादों के पिटारे, कुछ दर्द भरे ज़ख्म तो कुछ सुखद नज़ारे। अपने ही किये पर ये जब दिन-दिन भर यूँ रोता है, गलती न दोहराने की तब सीख स्वयं ही लेता है। बच्चों की सी अठखेलियां करता है, जो नहीं करना होता, वही पहले करता है; ये मन है....जो हमेशा सजग रहता है, ये मन है....जो कभी नहीं सोता है। - आकर्ष मिश्रा