अपना बचपन क़ैद कर ज़िम्मेदारियाँ गले लगा ली, रास्ते तन्हा थे अंजान थे मग़र उसने राह चुन ली, गिरेगी संभलेगी दौड़ेगी हार मान कर रुकेगी नहीं, नैया लहरों पर चलती है डूबने उसे कभी देगी नहीं, मासूम बचपन छोड़ा मगर ख्वाहिशें उसकी मरी नहीं! ©सुधा #kitaabein #सुधापरिधि #sudhaparidhi