ख्वाहिशें न कोई भी पूरित हो सकी वीरवर को तो समर में उतरना ही था माँ और मुझ में से एक को चुनना भी था माँ को चुनकर मुझे अमर कर गए चुनते अगर मुझे तो मरना ही था रोए तो भी किसे, था जो भी वो मेरा ही था छोड़ गया जो मुझे , उसको तो जाना ही था अकेले हैं फिर भी जीवन को संभाले रहे साँस में जो है वो, मरकर उसे मारना ना चाहा आस फिर भी यही , एक दिन मिलना तो हो एक बार ही सही, फिर से रूठे हुए को मनाना तो हो ©Bhavani Shankar Dan Depawat #Charan #charan7 #depawat #Deshnoke #bikaner #बेहद_लेखनी #AWritersStory