ग़ज़ल कुछ राज मुहब्बत में छुपाने के लिए हैं, कुछ राज अकेले में बताने के लिए हैं। सब कुछ ये जुबाँ कहती कहाँ इश्क़ में कुछ बात निगाहों से जताने के लिए है। आवाज़ जमाने की कब सुनी है दिल ने, अल्फ़ाज़ धड़कनों से सुनाने के लिए है। ख़ामोश जुबाँ रख, क़त्ल नजरों से करते क़ातिल वो निग़ाहों में बसाने के लिए है। दर्द मुहब्बत का सह पाया कौन "प्रियम" कुछ दर्द निग़ाहों से बहाने के लिए है। ©पंकज प्रियम दर्द