शमशान मैं जलते हुए इंसान को पाया है, घमंड में चूर चांडालों का साया है, मैं मकबरों पे ऊंचा मकान बनाया हूं, मैं शहर का शमशान होके आया हूं। यहां पर मुर्दों से ज्यादा चुप जिंदे मिलेंगे, और बिन आग के जलते परिंदे दिखेंगे, मैं अपने आंगन को बड़ा बनाया हूं, क्यूंकि में शहर का शमशान हो कर आया हूं। यहां अर्थी को जो सामने खड़े हो जाते है, वो सहारे में हाथ बांधे पीछे क्यों चले जाते है, मैं तेरे झूठ को सच और सच को झूठ कर आया हूं, क्यूंकि मैं वो शहर के शमशान हो कर आया हूं। वहां पर भी मुर्दे दर्द से छटपटाते है, जलती लकड़ी को भरसक हटाते हैं, मैं उनके जलन पर रो कर आया हूं, की मैं शमशान हो कर आया हूं। शमशान #yqdidi #yqbaba #yqmdwriter #writersofindia #yqshamshan