ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय का ग्वाला लिखूं! कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं! पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं। चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं। रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं! जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं। देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।