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जज़्बात बिखर गये एक वक़्त वो भी था जब तेरी बाहों म

जज़्बात बिखर गये
एक वक़्त वो भी था जब
तेरी बाहों में समा कर भूल
जाती थी सब कुछ
अब कशिश वो रही नहीं

एक वक़्त वो भी था जब
साथ न होकर भी पास होने का
गुमां होता था
अब नज़दीकियाँ वो रही नहीं

एक वक़्त था जब मयस्सर था
सुकून-ए-दीदार-ए यार
अब मरासिम वो रहे नहीं

काश... 

कुछ तुम आगे बढ़ते 
कुछ हम हाथ बढ़ाते
तो फ़ासले ये रहते नहीं... 

आज देने आई हूँ श्रद्धांजलि अपने दरकते रिश्ते की मज़ार
पर लेकर ये गुलाब
कि बेजान रिश्ते दूर तक
साथ चलते नहीं.... 

Sunita Sachdeva

©Sunita Sachdeva
  #मेरे_अल्फाज़