कहो हाथ क्या पाया है:- चमक रहे ये शीश महल स्वर्ण से सजाया है, बेसक बाजी जीती, एक अलग पहचान बनाया है| तेरे मेरे केे रिश्ते में, बहुत खोया कुछ ही पाया है, अब कहो हाथ क्या आया है| बनाये जो बंधन उम्र सारी बीत जाती है, आँखों देखा आशिया, कल तेरा हो जाता है| लोभ में फंस कर, कितने रिश्तों को झूठलाया है अब कहो हाथ क्या आया है| राज करने को यहाँ, एक-दूजे को तोड़ रहे है, हीरे को त्याग कर, स्वर्ण को खोज रहे है| लूटी जो दुनिया, पुराने रिश्ते याद आये है अब फिर से बहुत कुछ हाथ पाये है| ©Rakhi jha पुराने रिश्तों की अ Shristi Yadav yàdáv jí