कुछ अधुरी गज़लें है, कुछ अधुरेे शेर है, कुछ अधुरे मतले, किताब-ए-कल्ब में लीखे है कबसे, कुछ अनसुलजे मसले... ना रहेगा तु मुसलसल, ना ही वो तेरे वादे, ना ही वो तेरी कसमें, रुठेगा जब खुदाया हमसे, मीट़ जायेगी ये हस्ती, मीट़ जायेगी ये नस्ले.. एक बात जमी है बरसों से लब पे, सुन केहेता हुं अब तुजसे, वक्त है अभी, फिर ना होगा ये, करले इश्क तुं अब मुजसे... मौत ही मंज़ील है तेरी, अब कितना भागेगा उससे, इन साँसों पे तुं यंकीँ ना कर, धोका खायेगा क्या खुदसे?... देख ये बाँहें है फेली, आ समा जा तुं अब इनमें, सुखा-बंजर खडा ये "मौजी", बन फसल लेहेरा जा तुं मुजमें... - मौजी #गज़ल