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मयस्सर मुझ को हर दौरे-उम्र में.. पैहम रहा ख़ुशी टिक

मयस्सर मुझ को हर दौरे-उम्र में.. पैहम रहा
ख़ुशी टिकी दो घड़ी..साथ ग़म.. हरदम रहा

शिकायत करते भी तो किससे और..क्या करते
सितारा ही मिरे बख़्त का.. जब रोशन.. कुछ कम रहा

दम पर हौसलों के..तय किये हैं मरहले कई
है सुकूँ कि ज़ब्त मिरा.. हर हाल..मुब्रम रहा

मुन्तज़िर रहे कि..कोई तो असर हो..दुआओं का
मगर मिरी ज़ानिब.. हर इशारा उसका..मुबहम रहा

मुस्कुरा के भले ही.. निकल गए..हर मोड़ से हम
ये बात और के..आँख के कोर में..कतरा-ए-शबनम रहा
पैहम=लगातार  बख़्त=भाग्य
मरहले=पड़ाव  ज़ब्त=सहनशीलता
मुब्रम=दृढ़   मुबहम=अस्पष्ट

©Kumar Dinesh
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