बाजे अस्तोदय की वीणा--क्षण-क्षण गगनांगण में रे। हुआ प्रभात छिप गए तारे, संध्या हुई भानु भी हारे, यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥ ह्रास-विकास विलोक इंदु में, बिंदु सिन्धु में सिन्धु बिंदु में, कुछ भी है थिर नहीं जगत के संघर्षण में रे॥