जोधपुर और मैं... तो कहानी की शुरुआत होती है एक चाय से... बड़ी जल्दी में है आज मन्नत (मन्नत इस कहानी का एक किरदार है), आज के अत्यंत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम से पहले वो महज दो घंटे ही सोया है, रात भर की जद्दोजहद की मेहनत के बाद कब दो घंटे सो गया उसे पता भी नहीं चला, उस की आँखों में नींद की परछाई साफ साफ झलक रही है, इन सब उलझनों के बीच उसने जोधपुर की पसंदीदा चाय के लिए इशारा किया " भईया एक चाय"... चाय के आने से पहले उसके मस्तिष्क की गहराई में जोधपुर दोड़ गया " लगता है जैसे एक अरसे से बसा हुआ है ये जोधपुर कहीं जहन में , अब तो रग रग में इसके चाय की महक बस गई है, लगता है जैसे वो जोधपुर का ही है, किसी और शेहर से एक अजनबी की तरह कभी यहाँ आया ही नहीं था इन पिछले कुछ सालों में जोधपुर इतना याद नहीं आया पर जब आज कुछ महीनों बाद जोधपुर को अलविदा कहने का विचार मन में आया तो जैसे कांटा चुभ गया हो पैर में, जैसे किसी ने जोर का थप्पड़ मारा हो और एक सुहाना सपना टूट गया हो, जैसे खूबसूरत दिखने वाला आईना अचानक से टूट गया हो..." भईया! भईया! भईया! कहाँ खो गए.... चाय ठंडी हो रही है... इस ध्वनि के साथ जैसे मन्नत किसी और दुनिया से हकीकत में लौट आता है, और महज मुस्कुरा देता है उसके सामने... यूं तो इस चाय की थड़ी पर मन्नत का रोज का आना जाना है पर आज की चाय कुछ ज्यादा ही मिठास घोल रही थी उस पर, इसी बीच उसे वक़्त का ख्याल आता है और वो जल्दी जल्दी चाय खत्म कर कॉलेज की ओर तेज़ तेज़ कदमों से एक अनजाने सफर की ओर चल पड़ता है....(अनजान सफर यूं कि अनजाने में किसी से मिलना लिखा है आज...) जारी रहेगी.... जोधपुर और मैं... . . . . . .