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सपनों में वो आती है पलके खुलते ही न जाने कहाँ चली

सपनों में वो आती है
पलके खुलते ही न जाने कहाँ चली जाती है
कहकशी सूरत छरहरी काया
मन करता है पलके मूंदे रहू
शामों- सहर उसको निहारता रहूँ
डर है आंख खुल न जाये
कहीं वो ओझल हो न जाए
सपनों में वो आती है

सपनों में वो आती है पलके खुलते ही न जाने कहाँ चली जाती है कहकशी सूरत छरहरी काया मन करता है पलके मूंदे रहू शामों- सहर उसको निहारता रहूँ डर है आंख खुल न जाये कहीं वो ओझल हो न जाए सपनों में वो आती है #Ones_time_yaar

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