{मैं चाहता हीं नहीं तेरा नाम ले अब कोई! डर है शायद कमजोर पड़ जाऊंगा!!} दूर रहना चाहता हूँ तेरी यादों के धागों से! कोई नाम भी ले ले तेरा तो खुद को रोक नहीं पाऊंगा! संभाल पाया हूँ खुद को बड़े हीं मशक्कत से! डर है कहीं बिखर न जाउंगा! तेरी चाहतों से दुर अब रखना चाहता हूँ खुद को! क्या पता तुझे देखते हीं तुझसे लिपटने से खुद को रोक नहीं पाउंगा! इस "प्रकाश" के दर्द को अगर तुं नहीं समझी! सच कहता हूँ अब मैं जी नहीं पाउंगा! सफर लम्बा तो नहीं है जिंदगी का मेरा! खुदा कसम चार पल भी नहीं जी पाउंगा! मैं चाहता हीं नहीं तेरा नाम ले अब कोई! ड़र है शायद कमजोर पड़ जाउंगा! 3 ©Prakash Vats Dubey #solotraveller Amresh Krishna