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वो दरिंदे कानून के हाथों से इस बार भी फिसल जायेंगे

वो दरिंदे कानून के हाथों से इस बार भी फिसल जायेंगे;
क्यों की हादसे के गवाह पैसा देख बदल जायेंगे।
लोग मोमबत्तिया जलायेंगे , नारे लगायेंगे ,
घर जायेंगे , खाना खायेंगे , सो जायेंगे;
और अगले ही दिन खबर आएगी अखबार में
"मंदिर वहीं बनायेंगे"।

उन नंगी नज़रो से थक गई में, 
आखिरकार पंखे से लटक गई मैं
गवारा न था मुझे समाज के सवालों में जल जाना;
आपने मदद की उम्मीद जगाई थी , 
तब जाकर चोखट पे आयी थी;
और आपने क्या कहा "ओ स्त्री कल आना!" #OpenPoetry 
ओ स्त्री कल आना!
वो दरिंदे कानून के हाथों से इस बार भी फिसल जायेंगे;
क्यों की हादसे के गवाह पैसा देख बदल जायेंगे।
लोग मोमबत्तिया जलायेंगे , नारे लगायेंगे ,
घर जायेंगे , खाना खायेंगे , सो जायेंगे;
और अगले ही दिन खबर आएगी अखबार में
"मंदिर वहीं बनायेंगे"।

उन नंगी नज़रो से थक गई में, 
आखिरकार पंखे से लटक गई मैं
गवारा न था मुझे समाज के सवालों में जल जाना;
आपने मदद की उम्मीद जगाई थी , 
तब जाकर चोखट पे आयी थी;
और आपने क्या कहा "ओ स्त्री कल आना!" #OpenPoetry 
ओ स्त्री कल आना!
milanpandya9410

Milan Pandya

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