चलता ही रहा मुसाफ़िर रात- दिन बदलता ही रहा ये समाँ रात- दिन खामोशी ने भी अब तोड़ दी बेड़ियाँ, ख्वाहिशों में उड़ रहा मुसाफ़िर रात- दिन क्यूँ राहों में अकेले सफर था तुम्हारा, कोई मिला है तो थाम हाथ रात- दिन बदले किस्मत या जिंदगी अगर कोई तेरी तो निभा लेना तू भी साथ रात- दिन घुल गयी धुन्ध अब इस कड़ी धूप में , और पहचान आए पूरे रात- दिन अब ना बैचेनी है ना ही कोई शिकन, उड़ता ही फिरे अब तो मन रात-दिन। ©Mawari Nimay #Love #Life #Life_experience #ham #we #erotica #Best #Quotes #poem #AloneInCity