कुछ अमिय भरी कुछ भरी हलाहल सब लुभाती रही रसिक मन चंचल आशिकों की संपत्ति चल अचल कुछ का पान कुछ मसलने का पहल नरम पाँव भी रसिक देखे सम्हल जाने कितने बने शायरी गज़ल खुदा ने बनाया ऐ कैसा महल आने का जरिया जीने का मसल गुस्ताखी माफ़ #श्रृंगार_खिचड़ी