जब कुछ जख्मों ने मेरे कदमों को जीवन की राह से दूर कर दिया था ।। कोई कहने लगा शायद ही अब मैं चल पाऊंगा , शायद जिदंगी भर शारीरिक रूप से अक्षम ही रह जाऊंगा । पकड़कर साथ चलते हुए मेरे कदम लड़खड़ाते थे जब ।। मददगार बनने से अपने भी कतराते थे तब ।। शायद ही फिर कोई आस बाकी थी ।। मगर मेरे कदमों को चलने की एक लगी तलब बड़ी भारी थी । फिर एक आस लिए लौटा मेरे जिवन में प्रकाश भरने कि खातिर ।। भौतिक चिकित्सक ही था जब मेरे बेजान कदमों में हाजिर ॥ जिदंगी पटरी पर लौटी मेरे कदमों जब उसने जान फूंकी । मेरे अंधेरे जिवन में प्रकाश की लौ जला डाली ।। जिदंगी की राह से कदमों की राह मिला डाली ।। हां भौतिक चिकित्सक ही था , वो जिसने अक्षम को सक्षम जिदंगी दिला डाली ।। #physio