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चंदा रे ! ग़ुस्सा मत होना ! ज़ालिम था वो घना अँधे

चंदा रे ! ग़ुस्सा मत होना ! 
ज़ालिम था वो घना अँधेरा 
जिसने मेरा आँगन घेरा 
बनते-बनते फिर से बिखरा 
तेरे द्वारे का पगफेरा 
शायद कोई फेंक रहा है 
तुझ पर, मुझ पर जादू-टोना 
चंदा रे! ग़ुस्सा मत होना !
अब तुझसे क्या राज़ छिपाऊँ 
तुझसे ही चाँदनी कहाऊँ 
सूरज बुझता हो बुझ जाए 
तेरे छिपने से घबराऊँ ! 
तुझसे, मुझसे ही रोशन है 
धरा-सेज का कोना-कोना ! 
चंदा रे! ग़ुस्सा मत होना !

©S Talks with Shubham Kumar चंदा रे! गुस्सा मत होना!
चंदा रे ! ग़ुस्सा मत होना ! 
ज़ालिम था वो घना अँधेरा 
जिसने मेरा आँगन घेरा 
बनते-बनते फिर से बिखरा 
तेरे द्वारे का पगफेरा 
शायद कोई फेंक रहा है 
तुझ पर, मुझ पर जादू-टोना 
चंदा रे! ग़ुस्सा मत होना !
अब तुझसे क्या राज़ छिपाऊँ 
तुझसे ही चाँदनी कहाऊँ 
सूरज बुझता हो बुझ जाए 
तेरे छिपने से घबराऊँ ! 
तुझसे, मुझसे ही रोशन है 
धरा-सेज का कोना-कोना ! 
चंदा रे! ग़ुस्सा मत होना !

©S Talks with Shubham Kumar चंदा रे! गुस्सा मत होना!
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