इक ज़रा सी बात पर हम ख़फ़ा हो गये वो शायद थे मुन्तज़िर बेवफ़ा हो गये बाज़ी-ए-इश्क़ में कहाँ होती है हार-जीत जो इनआ'म थे कभी अब सज़ा हो गये मेरा मर्ज़ भी तुम्हीं हो वो चारागर तुम हो जो दवा होते - होते नशा हो गये वो बातें वफ़ा की उन रातों में करना तुम क्या थे कभी क्या से क्या हो गये मुन्तज़िर - इंतज़ार में , चारागर - डॉक्टर