कुछ कम हो चली हैं ख़्वाहिशों की रफ़तार अब इनमे सिमटती तू जो नही हैं। ठहर ठहर के बहती है हवा, ना भी बहे तो क्या अब इनमे महकती तू तो नही है। ये फ़लक पे चाँद कुछ इतराता ज़्यादा है अब रातों में आती तू जो नही है। हर शाम शोर में डूबी गीली लकडियो सी अब दिल मे जलती तू तो नही है। #rishisingh#sahityachopal