कि वो मेरा पागल पन ही था, या इसमें कुछ तेरी भी हिस्सेदारी थी... और हर बार मैं ही मनाता था तुमको, क्या एक बार तुम्हारी भी जिम्मेदारी थी... व हर शाम तेरी चौखट पर पहुंचना मेरा, लेकिन उस बार आवाज़ देने कि तुम्हारी ही बारी थी.. मैं कभी मंदिर न गया ये खुदा को पता है, मैं ठहर जाता गर अजान अता करने कि तुम्हारी तैयारी थी.. और जरूरी नहीं कि इश्तेहार में बताऊ ख़ुद को, पर अखबारों को जलाने में क्या समझदारी थी... व तुम वाकिफ थे हर फ़साने से मेरे बखूबी ही, पर मुझे एक पल में ही भुलाने कि कौन सी तैयारी थी... #Taiyaari.......