"तू माटी मैं पानी" तू माटी ,मैं पानी। आ मिल जायें एक दूसरे में। बना लें कुछ। करें साकार उस स्वप्न को । कल्पना को कुछ रूप दें। मेरे बिन धूल तू बन उड़ जाए। तेरे बिन मैं यूँ बह जाऊं। आ सोख ले मुझे खुद में । तेरे कणों को मैं भिगो दूं । फिर जो चाहे तुझे कोई रूप दे। परिपक्व हों जायें हम दोनों साथ कुम्हार जब हमें आग और धूप दे। फिर रंग जायें किसी रंग में डूब जायें साथ किसी भंग में टूट गए जो कभी तो तुझे बिखर जाना है मेरा क्या मैं पानी हूँ मुझे वाष्प बन उड़ जाना है।। रचयिता:- बलवन्त रौतेला (B.S.R.) रुद्रपुर 29/09/2019 02:20 pm