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तंज़ करो, लहज़ा ज़रा दिल-अज़ीज़ तो रखो, ज़हर भी य

तंज़ करो, लहज़ा ज़रा दिल-अज़ीज़ तो रखो, 
ज़हर भी यूँ पी लेंगे, ज़ायक़ा लज़ीज़ तो रखो! 
हम तक़ल्लुफ़ के तलबग़ार तो ख़ैर कभी न थे, 
सनम, किससे मुख़ातिब हो, ये तमीज़ तो रखो!

©Shubhro K
  #30Mau2022
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Shubhro K

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#30Mau2022

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