काश ! किसी क्षितिज के पार कहीं से झरनों के बहते से स्वर में काश ! सुनाई देती वो धुन जो दुनिया की धूप में घुलकर बारिश की रुनझुन बन जाती बारिश, जिससे फ़िर से उगती धरती पर कितनी हरियाली ! किसी हरे, नन्हे पौधे से या घासों की किसी कोर से काश ! पनपती कोई कलिका जो पतझड़ की धूल में खिलकर फूलों का मौसम ले आती फूल वही, जिनसे दुनिया बन जाती असली रंगों वाली ! - ©अनुपमा विन्ध्यवासिनी ©Anupma Vindhyavasini #writingsofanupma #anupmavindhyavasini #hindikavita #poetry #poem