कैसे?इस पर विस्तारित चर्चा बाद में होगी,सबसे पहले तो छोटा सा संस्मरण संबंधित विषयवस्तु पर प्रस्तुत है:- हुआ यों कि एक बार बचपन मैं जब साइकिल चलाना सीख रहा था,तो अपने उस शरारती मित्र के कारण जो मुझे साइकिल सिखा रहा था के कारण मैं गिर गया।गिरने का कारण स्पष्ट था कि उसने कहा कि भाई तू आगे देख और पैडल मारने की कोशिश कर,पर किसे पता था कि बंधु ने 'एकला चलो रे' बताने की ठान रखी थी और हुआ भी बिल्कुल वैसा ही ,एकला चलो का नारा बुलन्द करने वाले श्रीमान भारत भूषण जी क्षण भर में वसुंधरा का आलिंगन करते पाए गए और वसुंधरा ने भी स्नेह की बरसात करते हुए कुछ अधिक ही प्रेम कर दिया जिसके फलस्वरूप श्रीमान जी की पेन्ट ये दूरियाँ ये फासले अब नहीं गाते हुए पीछे और आगे फट चुकी थी,कमाल का नक्शा बनाते हुए फटी थी वो,उस जमाने में उसे छुपाते हुए किसी तरह घर वो पहुँचे और पेन्ट बदली पर आज ऐसा कुछ हो जाए तो लोग कहेंगे क्या बात है वाह बिल्कुल ट्रैण्डींग लूक! ©Bharat Bhushan pathak #पोशाक भाग-२