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चिल्ला कर कहता रहा मुझे घृणा नहीं, द्वेष नहीं, अ

 चिल्ला कर कहता रहा 
मुझे घृणा नहीं, द्वेष नहीं,
अपमान नहीं, क्रोध नहीं 
अपितु प्रेम चाहिए।

बस जब अकेला हो जाऊं
असहाय हो जाऊं
जब जरूरत हो मुझे
तब साथ दे देना
थोड़ा-सा प्रेम दे देना।

परन्तु न मिला मुझे यह सब 
अपितु घृणा, द्वेष, अपमान, 
क्रोध ये सब प्राप्त हुए।

अब भी भटक रहा हूं प्रेम के लिए
जिसमें हो सहभागिता, विश्वास, 
सहायता, मित्रता, अपनत्व, स्वतंत्रता,
समझ जो एक सच्चे प्रेम में होता है। 

मुझे वह प्रेम चाहिेए 
जो मुझे सिखा सके 
संसार घृणा-द्वेष पर नहीं
प्रेम और सत्यता पर टिकी है।

©दुलामणी पटेल

©Dulamani Patel (सारथी)
  #प्रेम #घृणा #जीवन #अकेलापन