ना देखो मुड़ के उन गलियों को ना जाने कब वापस जाने का मन कर जाए के तुमने नापी तोली थी कहां चुभती थी ये सोच कर रुक जाए उन टेढ़ी मेढ़ी गलियां के कोने है पहचाने कितने अंधेरे और कितने उजाले था पुकारा और धिक्कारा तुम्हें क्यूं याद कराएं ना देखो मुड़ के उन गलियों को ना जाने कब वापस जाने का मन कर जाए गलियां