रात को रोक लिया, दिन को भी ढलने न दिया आतिशे इश्क़ ने कभी दिल को संभलने न दिया अपने दुश्मन तो हमीं ख़ुद हैँ,गिला किससे करें हम तो रुसवा भी हुये जाम छलकने न दिया हमने धड़कन को भी सीने में छुपा कर रखा हद के अंदर भी अरमां को मचलने न दिया जी में आया कि नईं दुनियां बसा लें लेकिन हसरते दीद ने वादों से मुकरने न दिया आतिशे इश्क़ ने झुलसा के रख दिया हमको राख होने न दिया, हमको सुलगने न दिया किसी मुफलिस की पूंजी की तरह रखा है खत जलाये थे मगर यादों को जलने न दिया अनु 'इंदु' हसरतें अनु मित्तल ' इंदु '