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एकांत ऐसा जहां मेरा महादेव संग गौरा के अकेला ठहरा

एकांत ऐसा जहां मेरा महादेव संग गौरा के अकेला ठहरा है
संगत इतनी भिन्न जहां भूत पिशाच देव गंधर्व पशुओं का पहरा है
आभूषणों बन गए जिसके नाग वृश्चिक सिंह चर्म तक
गंगा शिर से स्त्रवित हुई और सिर पर चंद्रमा का सेहरा है

©Dr Rudra Pandit
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