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अब मूंछों पर ताव क्यों नहीं मारे। मांगते पानी, बेभ

अब मूंछों पर ताव क्यों नहीं मारे।
मांगते पानी, बेभाव क्यों नहीं मारे।।

इस गुलशन में लगे इन दीमकों पर।
कीटनाशी छिड़काव क्यों नहीं मारे।।

उखड़ जातीं अटकी सांसें दुश्मन की।
और दो-चार घाव क्यों नहीं मारे।।

रगड़ चुके थे सांपों के फन पे एड़ी।
जोर से उसपर पांव क्यों नहीं मारे।।

जब जकड़ लिए भुजाओं में दुर्योधन को।
तो जंघा पे अंतिम दांव क्यों नहीं मारे।।

राष्ट्र धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं।
फेंक मुंह पे ये सुझाव क्यों नहीं मारे।।

विनोद विद्रोही 
नागपुर
#सीजफायर #जम्मू-कश्मीर
अब मूंछों पर ताव क्यों नहीं मारे।
मांगते पानी, बेभाव क्यों नहीं मारे।।

इस गुलशन में लगे इन दीमकों पर।
कीटनाशी छिड़काव क्यों नहीं मारे।।

उखड़ जातीं अटकी सांसें दुश्मन की।
और दो-चार घाव क्यों नहीं मारे।।

रगड़ चुके थे सांपों के फन पे एड़ी।
जोर से उसपर पांव क्यों नहीं मारे।।

जब जकड़ लिए भुजाओं में दुर्योधन को।
तो जंघा पे अंतिम दांव क्यों नहीं मारे।।

राष्ट्र धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं।
फेंक मुंह पे ये सुझाव क्यों नहीं मारे।।

विनोद विद्रोही 
नागपुर
#सीजफायर #जम्मू-कश्मीर
vinodyadav1587

Vinodvidrohi

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