करते- करते मेरे वक्ष पर प्रहार जब पसीने से लथपथाने लगा, हया न आई उस हत्यारे को मेरे ही जुल्फों तले आराम फरमाने लगा! ज्यो ही सरस मधु छत्ते को देखा उसका जी ललचाने लगा , दर्जनों कुल्हाड़ी दे मारा मेरी जिस्मो पर, अफरा-तफरी में मधुमक्खियों का दल भनभनाने लगा! हाथ पांव खड़े हुए बसिंदो के उजड़ गए घर परिंदों के, एक कुल्हाड़ी जा लगी उसके पैरों पर, पीड़ा से वह छटपटाने लगा, मेरे ही पल्लव, कोपलों के रस को अपने जख्मों पर गिराने लगा ! भूख लगी उसे भी जब हृदय गति में शोर हुआ, मेरे ही फल को खाकर वो शांत विभोर हुआ! सिंह भुजंग को देखा उसने भय से तन बदन थर्राने लगा, सहसा मेरे कंधों पर चढ़कर अपनी जान बचाने लगा! कुछ क्षण बाद उस कंधों को भी मार गिराया उसने मानव तो जिंदा रहा, मानवता कहां जाने लगा! हया न आई उस हत्यारे को मेरे ही साए तले आराम फरमाने लगा! मधु, फल, लकड़ियों समेत सभी का गट्ठर बनाया उसने, इतना का बेचूंगा, उंगलियों पर बखूबी हिसाब लगाया उसने घोसलो को कूचलते हुए अपने शहर को जाने लगा, हया ना आई उस हत्यारे को मेरे ही डाली तले आराम फरमाने लगा ll ©chanda Yadav #wordsofchanda#kavita#nojotopoetry#deforestation