मेरे दादा जी दादा होते होंगे आज,हमारे तो बासा थे,घर मे सबसे ज्यादा सहानुभूति हमारे दर्द से कोई रखता तो वो थे बासा, खाने में सब्जी मनपसदं नही बनती(वास्तव में 50 से 80 प्रतिशत सब्जियां मन को पसंद थी ही नहीं) या तीखी बन गई होती तो घर में बाकि सब लोग तो बोलते ज्यादा नखरे मत कर,जो बना आया चुपचाप खा ले लेकिन अपने को तो नखरे ही करने होते थे, उतर आते एक आध घंटे की भूख हड़ताल पे,लेकिन बासा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की तरह केस अपने हाथ मे लेते,सबको लाइन हाजिर करते और हमें दानेदार शुद्ध देसी घी में शक्कर डलवा कर खाना ख