आज यौं डोखरा पुंगड़ा मां फिर रंगत ऐगी यौं सूना पड्या घरों मां फिर हल्ला-गुल्ला व्हैगी कुछ ना व्है त ईं बीमारी न लोग त अपड़ा उब पैटाई धै लगाण बुलाणी रै य धरती अब त कुछ समझ आई जौं छोड़-कुड़ी छोड़ी तुम जै न आज विपदा मां वखी तुमुन शरण पाई हे! मेरा नौन्यालों अब ना जाए छोड़ी क मिथैं तुमारा औण न मेरी आस जगाई गढ़वाली बोली में रची गई मेरी द्वारा दूसरी कविता हिंदी अनुवाद आज इन बंजर पड़े हुए खेतों मैं फिर से हरियाली छा गई है इन सूने पड़े घरों में फिर हल्ला-गुल्ला हो गया कुछ नहीं हुआ तो कम से कम इस