पानी कहूँ या जिन्दगी, है जीवन का सार| बूँद-बूँद में बंट गई, मोटी-मोटी धार|| सूखी पड़ी जमीन की, तुझसे बुझती प्यास| अंकुर-अंकुर में जगे, फिर जीवन की आस|| तुझ बिन अन्न न उपजते, मिटे न जग की भूख| बिन पानी इस जगत में, रहे सूख की सूख|| अमृत सम लगता यही, जब हो तीखी प्यास| नर, खग हो या जानबर, सबको आये रास|| दिन प्रतिदिन ये घट रहा, है चिन्ता की बात| मूरख जन अनजान बन, खुद ही करते घात|| पानी को न बहाइये, इसकी कीमत जान| गन्दा करना छोड़ दो, छोड़ो तुम अज्ञान|| संचय जितना कर सको, करो जतन हर कोय| बूँद-बूँद सों घट भरे, घट सागर सम होय|| 'मँजू' पानी बूँद भी, व्यर्थ न बहने पाए| सब जन मिलकर ठान लें, तो पानी बच जाए|| © मनोज कुमार "मँजू" युवा कवि, मैनपुरी 📱९७१९४६९८९९ #manojkumarmanju #manju #hindipoems