_*पितृ दिवस पर सभी पिताओं को समर्पित कुछ दोहे...*_ *देवतुल्य है हर पिता, वह जीवन का मूल।* *वह पराग के तुल्य है, जिससे खिलते फूल।।1* *संतति को देता सदा, गहन वृक्ष सम छाँव।* *कष्ट न हो संतान को, खुद लग जाता दाँव।।2* *पर्दे के पीछे करे, संतति के सब काम।* *देकर उनको हर खुशी, करता वह विश्राम।।3* *जीवन की हर जटिलता, करता रहता दूर।* *बिन पाले वह लालसा, दे ख़ुशियाँ भरपूर।।4* *संकट यदि हो सामने, बन जाता दीवार।* *दृढ़ता से वह हो खड़ा, सह लेता हर वार।।5* *सही गलत में फर्क कर, दिखलाता वह राह।* *बच्चे गलती मत करें, इतनी रखता चाह।6* *ऊपर से वह शुष्क अरु, दिखता बहुत कठोर।* *अंदर सागर नेह का, लेता सदा हिलोर।।7* *प्रेम प्रदर्शन कर सके, पितु का नहीं स्वभाव।* *आवश्यकता पूरी करे, खुद सह सर्व अभाव।।8* *अनुशासन की नींव को, पिता करे मजबूत।* *संयम से कैसे जियें, दे खुद नित्य सुबूत।।9* *शुद्ध विचारों से सदा, जीवन बने पवित्र।* *देकर दंड उलाहना, संयत करे चरित्र।।10* *मातु पिता समतुल्य हैं, सच्ची है यह बात।* *दोनो परम अमूल्य हैं, माता हो या तात।।11* *जीवन के संग्राम में, पिता सदा है साथ।* *हिम्मत देता है हमें, और पकड़ता हाथ।।12* *माता संस्कारित करे, समझे अपना अंग।* *रह अदृश्य हरदम पिता, सदा जिताता जंग।।13* *बच्चों को शिक्षा दिला, दिखलाता वह राह।* *बच्चे बस उन्नति करें, मन में रखता चाह।।14* *ऋण न चुका पाये कभी, हो कोई संतान।* *वृद्धावस्था में मिले, बस थोड़ा सा मान।।15* *प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 16 जून 2019* _*पितृ दिवस पर सभी पिताओं को समर्पित कुछ दोहे...*_ *देवतुल्य है हर पिता, वह जीवन का मूल।* *वह पराग के तुल्य है, जिससे खिलते फूल।।1* *संतति को देता सदा, गहन वृक्ष सम छाँव।* *कष्ट न हो संतान को, खुद लग जाता दाँव।।2*