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सर से मासूम के हटा जब मां-बाप का साया मां-बाप की आ

सर से मासूम के हटा
जब मां-बाप का साया
मां-बाप की आंखों का
तारा अनाथ कहलाया।
माया ईश्वर की मासूम
समझ न पाया
आखिर क्यों उठ गया
मां-बाप का साया
मां-बाप के बिना मासूम
अनाथ कहलाया।
खेलने-खाने की उम्र में
जिम्मेदारियों का बोझ उठाया
कभी होटलों तो कभी
भट्टों पर रात बिताया
मां-बाप के बिना मासूम
अनाथ कहलाया।
कभी शोषण का हो
शिकार बचपना गंवाया
कभी बाल अपराधी बन
जीवन नरक बनाया
मां-बाप के बिना मासूम
अनाथ कहलाया।
दो जून की रोटी के खातिर
दर-दर की ठोकरें खाया
कभी रुखा-सूखा खाकर
कभी भूखा ही रात बिताया
मां-बाप के बिना मासूम
अनाथ कहलाया।
मां-बाप को याद कर
छुप-छुप नीर बहाया
पापी पेट के लिए कभी
भिक्षावृत्ति अपनाया
मां-बाप के बिना मासूम
अनाथ कहलाया।

©Màñjú
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