ईर्ष्या सीने की वो जलन है, जो पानी से नहीं अपितु सावधानी से शांत होती है। ईर्ष्या की आग बुझती अवश्य है किन्तु बल से नहीं, विवेक से। ईर्ष्या वो आग है जो लकड़ियों की नहीं अपितु आपकी खुशियों को जलाती है।