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"आखिर क्यूँ....???" (कहानी लेखन प्रयास में मेरी त

"आखिर क्यूँ....???"

(कहानी लेखन प्रयास में मेरी तीसरी कहानी है...कृपया अपनी बहुमूल्य समीक्षा पाठकगण ज़रूर दें...💐)





कैप्शन् में पढ़ें....


🌹 🌹
"प्रेम वास्तव में क्या इतना कमज़ोर बना देता है इंसान को कि वह अन्दर से ख़त्म जैसा हो जाता है?" नमिता के मन में यह प्रश्न लगातार कौंध रहा था,एक बिजली की भाँति!पश्चाताप के काले बादलों से घिरे उसके हृदयपटल पर बार-बार वह पल दामिनी की पतली रेखा से चमक उठते जब वह पहली बार मिली थी प्रगल्भ से!शांत और सौम्य छवि का मालिक,वाणी में ग़ज़ब का आकर्षण किसी को भी अपना बनाने में सक्षम था!हुआ भी यही नमिता खिंचती चली गयी उसकी तरफ़!भूल गयी थी स्वयं को,अपने आसपास को,अपने रात-दिन को!एहसास नहीं था उसे क्या हो रहा उसके साथ,क्यूँ इतना इंतज़ार करती है वह प्रगल्भ के साथ कुछ लम्हों को बिताने के लिए,उसके साथ हँसने के लिए,उसे छोटी-छोटी बातों पर सताने के लिए!

कहते हैं ना कि, हृदय को जहाँ अपनापन मिले,प्रेम मिले,वहाँ लगाव उत्पन्न हो ही जाता है! नमिता दो बच्चों की माँ ,सभी इच्छाओं को पूरा करने वाले सरकारी अफ़सर की पत्नी,सुख-सुविधाओं से सम्पन्न जीवन जीने वाली गृहिणी घर से बाहर ख़ुशी खोज़ रही थी,वो ख़ुशी जो उसे समझ सके,उसके मन को पढ़ सके!

यहीं प्रगल्भ का प्रवेश नमिता की ज़िंदगी में हुआ और ठहरे रुके पानी-सा उसका जीवन शीतल सरिता-सा लहरों के रूप में चलायमान हो गया!बात-बात पर खीजने वाली,पति की कमियाँ गिनाने वाली नमिता सब भूल अपने आप में प्रसन्न रहने लगी!बस उस समय के इंतज़ार में रहती जब प्रगल्भ से उसकी बात होनी होती!प्रगल्भ भी पूरी तन्मयता से नमिता को सुनता,समझता और अपनी बात कहता!यही बात नमिता को प्रगल्भ के प्रति आसक्त कर रही थी कि,कोई तो है जो उसे समझता है!

इधर नमिता के पति भी इत्मीनान से थे कि अब वह पहले सी परेशान नहीं रहती,बच्चों को डाँटती-डपटती नहीं और उनके व्यवहार को लेकर पहले सी टीका-टिप्पणी नहीं करती कि वह नमिता को अपना समय नहीं देते,अपने प्रेम का प्रदर्शन नहीं करते!
"आखिर क्यूँ....???"

(कहानी लेखन प्रयास में मेरी तीसरी कहानी है...कृपया अपनी बहुमूल्य समीक्षा पाठकगण ज़रूर दें...💐)





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"प्रेम वास्तव में क्या इतना कमज़ोर बना देता है इंसान को कि वह अन्दर से ख़त्म जैसा हो जाता है?" नमिता के मन में यह प्रश्न लगातार कौंध रहा था,एक बिजली की भाँति!पश्चाताप के काले बादलों से घिरे उसके हृदयपटल पर बार-बार वह पल दामिनी की पतली रेखा से चमक उठते जब वह पहली बार मिली थी प्रगल्भ से!शांत और सौम्य छवि का मालिक,वाणी में ग़ज़ब का आकर्षण किसी को भी अपना बनाने में सक्षम था!हुआ भी यही नमिता खिंचती चली गयी उसकी तरफ़!भूल गयी थी स्वयं को,अपने आसपास को,अपने रात-दिन को!एहसास नहीं था उसे क्या हो रहा उसके साथ,क्यूँ इतना इंतज़ार करती है वह प्रगल्भ के साथ कुछ लम्हों को बिताने के लिए,उसके साथ हँसने के लिए,उसे छोटी-छोटी बातों पर सताने के लिए!

कहते हैं ना कि, हृदय को जहाँ अपनापन मिले,प्रेम मिले,वहाँ लगाव उत्पन्न हो ही जाता है! नमिता दो बच्चों की माँ ,सभी इच्छाओं को पूरा करने वाले सरकारी अफ़सर की पत्नी,सुख-सुविधाओं से सम्पन्न जीवन जीने वाली गृहिणी घर से बाहर ख़ुशी खोज़ रही थी,वो ख़ुशी जो उसे समझ सके,उसके मन को पढ़ सके!

यहीं प्रगल्भ का प्रवेश नमिता की ज़िंदगी में हुआ और ठहरे रुके पानी-सा उसका जीवन शीतल सरिता-सा लहरों के रूप में चलायमान हो गया!बात-बात पर खीजने वाली,पति की कमियाँ गिनाने वाली नमिता सब भूल अपने आप में प्रसन्न रहने लगी!बस उस समय के इंतज़ार में रहती जब प्रगल्भ से उसकी बात होनी होती!प्रगल्भ भी पूरी तन्मयता से नमिता को सुनता,समझता और अपनी बात कहता!यही बात नमिता को प्रगल्भ के प्रति आसक्त कर रही थी कि,कोई तो है जो उसे समझता है!

इधर नमिता के पति भी इत्मीनान से थे कि अब वह पहले सी परेशान नहीं रहती,बच्चों को डाँटती-डपटती नहीं और उनके व्यवहार को लेकर पहले सी टीका-टिप्पणी नहीं करती कि वह नमिता को अपना समय नहीं देते,अपने प्रेम का प्रदर्शन नहीं करते!