ये रात है कि हमको हमसे ज्यादा जानती है, मेरे हर गम को मुझसे ज्यादा पहचानती है। गुफ़्तगू जब होती है रात में यादों से, तब दिल को न जाने क्यों सुकून आता है। ये अश्क़ भी रात को अब बेहक से जाते है अक्सर, न जाने क्यों सहर में साथ छोड़ जाते है अक्सर। यूँही जल्दी अब सहर नही होती है मेरी , रात का पहर अब सालो से होता है मेरा। #ये_रात_है_कि हमको हमसे ज्यादा जानती है, #mrshabdkaar