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मुहब्बत क्यों हुई दिल को अगर मेरा नहीं है तो,

मुहब्बत  क्यों  हुई दिल को अगर मेरा  नहीं  है  तो,
मुआफ़िक़  भी समझता  है अगर मेरा  नहीं  है  तो।

मिला जो वो दिखा आलम इधर जैसा उधर का भी,
हुआ  मुझ  सा गुलाबी क्यों असर मेरा  नहीं  है  तो।

शिकायत  है नुमाइश  को  भुला  बैठा  गली  मैं  वो,
सिखाओ  सादगी  अब  जो  हुनर  मेरा  नहीं  है  तो।

©Ruh Ki Aawaaz
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