मान भी ले कि दुनिया इक़ बाज़ार है सबको खरीदे जाने का ही इंतेज़ार है . आईने सच बोल ही देते हैं इक़ दिन टूट के बिखर जाने के तेरे आसार हैं . दिल्लगी ठीक गर दर्द न बन जाये तो खेल खेलिए भी इश्क़ के तो बेशुमार हैं . दिल थाम के कितने ही बैठे मलाल में कितने हुए बेज़ार हैं कितने लाचार हैं . धीर भी क्या जाने किस सफ़र में गुम है मिल मुझे कि मेरा पता मेरे अशआर हैं . अशआर