पूछा मैने आइने से, बता कैसी लगती हूँ? निहार कर कुछ देर, बोला...... मस्तिष्क पर रेखाएं नजर आ रही है,पर इनमें फ़िक्र अपनो की है। आखो में काजल सजा नही, नीचे डार्क सर्कल है, अपनो के लिये तू ठीक से सोई नहीं है। कानो में पहनी बाली नहीं,तूने ,पर अनकहा सुनने का हुनर आगया है। होठो पे सजी लाली नही,पर तेरे बोल मे प्यार झलकता है। नाखून टूटे बेरंग है,पर हाथों मे स्वाद आ गया है। तोंद थोड़ीसी बाहर आ गई है,यह खुदको समय ना देने का नतीजा है। कमर तेरी कमसिन ना सही तूने झुकना सीख लिया है। घुटनों में थोड़ा दर्द है,पर घर मे, दौड़ तेरी मेराथन वाली है। तू कल भी खूबसूरत थी,आज भी है कल तू चंचल राधा थी, आज लक्ष्मी हो गई है। शुभ महिला दिवस सप्ताह