आओ अपने खुले मनसे उस धूप का स्वागत करें, अंतर्मन की कोनों से हम श्रद्धा पूर्वक उसका नमन करें, लाखों कितने वर्षों से वो धर्तीको दे रहा उजाला, हमारी अंधेरी रातों के लिए चाँद को भी उसने रोशन कर डाला, जलचर थलचर नभचर सारे उसपर ही तो आश्रित हैं, सारे प्राणियों का उपजीविका उसके ही कारण तो स्थापित है, पुकारें हम उसे कितने नामों से "धूप, सूर्य, रवि व दिवाकर" कल्याण किया है हमेसा उसने हरेक अपने रूप में आकार, बिना उसके हमारा कोई वजूद ही ना रहता यहाँ, निर्भर उसपर सारा जनजीवन बिन उसके ना रहता ये जहाँ!! आओ अपने खुले मनसे उस धूप का स्वागत करें, अंतर्मन की कोनों से हम श्रद्धा पूर्वक उसका नमन करें, लाखों कितने वर्षों से वो धर्तीको दे रहा उजाला, हमारी अंधेरी रातों के लिए