इंसाँ का इंसाँ से जुड़ जाये ईद और इबादत सा बंधन, देखे ना क्या अपना-पराया,हो जाए ऐसा जन-जीवन। बाँटने के लिये यूँ ख़ुशियाँ, करे ना इंतज़ार त्यौहार का, इंसानियत का रोज़ खिले गुल,हो मुस्कुराता सा चमन। गिरते को दे सहारा, भूखे को भूखा जाने नहीं दे दर से, हर चेहरे में दिखे अक्स ख़ुदा का,हो उससा मन-दर्पण। ना पूरा बुरा कोई,ना पूरा अच्छा कोई,फिर डरना कैसा, अच्छे से अच्छा सीख,बुराई का कर दे रावण सा दहन। कुछ नहीं है यहाँ तेरा-मेरा, सब ख़ुदा की रहमत है 'धुन', दुआ यही, सँवरता रहे साल-दर-साल जन्नत सा अमन। 🎀 Challenge-282 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 ईद की हार्दिक शुभकामनाएँ 🎀 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।