बोल दो अपने दिल की बात, मुझसे कुछ छुपाओ ना, बुझे बुझे से हो क्यों तुम, मुझको तो बतलाओ ना। किस बात का डर है तुमको, किस बात की चिंता है, यूं घुट घुट कर अंदर ही अंदर, ऐसे तो मुरझाओ ना। कह दो चलता है जो मन में, सच सच सारी बात करो, इन झूठ मूठ की बातों से, मुझको तुम बहलाओ ना। जो होना है वो होगा ही, जो आया है वो जायेगा भी, व्यर्थ की बातों को सोच कर, शोक तुम मनाओ ना। दिल को थोड़ा आराम भी दो, दिमाग को थोड़ा शांत करो, "महिमा" ये दिल बड़ा नादान है, इसको थोड़ा तो समझाओ ना।। पेश है "दिल की बात" एक ग़ज़ल ❤️ नमस्ते🙏 प्रिय लेखक/ लेखिका✍️ यह प्रतिगिता का दूसरे चरण है। जिसमें आप सभी प्रतिभागियों को "५-१० पंक्तियों में लिखना है ।