चली कभी इतरा के,उसे पसंद थी झांझर मेरी, कहे बजती है धड़कन की तरह! अब जो बन गयी मैं तेरी तो लग रही हूँ नासूर की तरह। क्या यही तेरा इश्क़ है सोनू.... जो बँध के रह गया है तुझ से बेड़ियों की तरह। ना मुकम्मल सी आशिकी रही तेरी, ना वो दिखावटी पन था मेरा क्या यही था......अधूरा इश्क़ तेरा। ©अभिषेक मिश्रा "अभि" #सोनू_की_कलम_से #इश्क़_का_दर्द #अधूरा_इश्क़ #बेडियाँ