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ऐ ज़िन्दगी,ना अनपढ़ रहे, ना काबिल हुए खामखां तेरे

ऐ ज़िन्दगी,ना अनपढ़ रहे, ना काबिल हुए
खामखां तेरे स्कूल में दाखिल हुए..!
वक़्त यूँ रेत की तरह फिसलता रहा,
कोई मिलता रहा,तो कोई बिछड़ता रहा.!!
रह गयी बस यादें  इंसान बिछड़ गये ...!
तकलीफ़ न मिटी , दर्द भी रह गया
ना जाने कितनी अनकही बातें साथ ले जाऊगा….
ऐ ज़िन्दगी,ना अनपढ़ रहे, ना काबिल हुए......
खामखां तेरे स्कूल में दाखिल हुए..!

©Hindustani Traveller 
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Iqbal&Sehmat शायरी विचार समाज जिन्दगी

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